बचपन में हर बच्चे का अपना कुछ खोवाब होता है ,मेरे अन्दर भी कुछ खोवाब मेरे दिलो- दिमाग पर सवार हो रहे रहे थे |पता नहीं क्यों मुझे लिखने का बचपन से ही शौक था |मेरे दिमाग पर ये जूनून एक दिन तो भुत बन कर सवार हो गया|हुआ ये था की टीवी पर संजय दत्त,सलमान खान और माधुरी दीछित की फिल्म "सजन,आई थी |उस फिल्म में संजय दत्त का शायैर वाला रोल देख कर तो मै अपना होसो-हवास ही भूल गया ,उस समय मै क्लास ४ या ५ में पढता था|आप समझ सकते हो की लिखाई का भुत मेरे ऊपर किस कदर सवार था |पर अफसोश की नादाँ मन लिखू क्या ............दिल पता नहीं क्यों अन्दर ही अन्दर बेचैन रहता था|लिखने के जूनून के साथ ही उम्र भी बढाती जा रही थी ..................?अब मै बचपन से युवा हो गया था,और जैसा की युवा अवस्था में होता है|सलमान खान की फिल्म अगर देख लेता तो अगले दो-चार दिन सलमान बनाने की तयारी में गुजरते ,इसी बिच अगर क्रिकेट होने लगता तो सोचने लगता की क्यु न अजय जटेजा बन जाउँ ,शौक ये दीदार पूरी दुनिया को अपने अंदर देखता था|
पर खोवाब और हकीकत में जमीं आसंमान का फर्क होता है पर इस दिल को कौन समझाए,पहले अपने आप को समझाने की कोशिस भी करता था पर समझा नहीं पता|सोचा की मासूम दिल कही नाराज न हो जाये,ये दिल भी क्या चीज है,जो समझाना चाहो वो समझता नहीं और जो न समझाना चाहो वो ही समझता है|कभी-कभी तो कमब्खत से इतना परेशां हो जाता हु की जी करता है सिने निकल के ही फेक दूँ|
पर ये क्या ये तो अपने आप ही बैगर कुछ बताये ही सब कुछ समझाने लगा ,पता नहीं क्या हुआ इसे किसने इसका भुत उतारा ,अरे अब तो पहले की तरह मुझे न परेशान करता है और न सलमान-सचिन बनाने की जिद |क्या सचमुच समझदार हो गया है ये, या खोवाब और हकीकत की दूरियों का पता चल गया|कुछ भी हो बेटा अब पहले की तरह बात-बात पर जिद नहीं करता है\चलो अच्छा ही हुआ जिस काम को करने के लिए मै न जाने क्या-क्या किया,वो काम कुछ दिनों में अपने आप ही हो गया|
पर पता नहीं क्यों मै कुछ समय से अपने-आप से ही डरता हूँ|सोचता हूँ ये दिल सच-मच समझदार हो गया है,या कोई साजिश रच रहा है|पिछले कुछ समय से देख रहा हूँ इसकी हरकते ठीक नहीं है|दो दिन पहले आधी रत को नाहर वाली पोखर की तरफ दो लडको के साथ जाते देखा था|पता नहीं क्यों पढाई के दिनों से ज्यदा आज-कल किताबो में खोया रहता है|हर बात हर चीज में इस के अन्दर एक नयापन नजर आ रहा है,अपने उम्र से दो गुने लोगो से आज कल इस की ज्यदा पटती है|
पता नहीं क्यों दिल में अजीब-अजीब ख्याल क्यों आ रहे है,समय के साथ दिल-दिमाग की सोच भी बड़ी होती जा रही थी|
अरे ये क्या इस ने तो कल हाई-स्कूल के मास्टर जी की मोटर साईकिल घेड़ ली,बातो-बातो में इस ने धमकी भी दे डाली नहीं होने दूंगा ऐसा?मास्टर जी इंग्लिश पढ़ते है और महीने में सिर्फ एक दिन आते है महिना उठाने |ये ठीक है की मास्टर जी सिर्फ महिना उठाने आते है,पर इस से इसका क्या लेना-देना है|अब इस से तो मुझे बहुत डर लगता है पता नहीं कब कहा किस से किस बात पर लड़ बैठे............?पुरे गांव में ये हवा फ़ैल गई की इस ने मास्टर जी की मोटर साईकिल घेड़ ली थी|ये हवां अभी सांत भी नहीं हुआ था की गांव के मुखिया से लड़ बैठा,,सड़क के किनारे बन रही नाली को लेकर...........................................?
समझ में नहीं आता की पुरे जमाने का ठेका क्यों अपने सर पर उठाना चाहता है .................................अब इस के इरादे मुझे ठीक नहीं लग रहे है......................पर ये कुछ गलत तो कर नहीं रहा,तो मै इस से इतना डर क्यों रहा हूँ,यार.......................फिर भी पता नहीं क्यों दिल कुछ ज्यदा ही परेशां नजर आ रहा है ...............?शाम को हाई स्कूल के मैदान में बैठे-बैठे न जाने दो चार लडको के साथ क्या खुसुर-फुसुर कर रहा था|शाम ढल चुकी थी आसमान में बदलो का जमावड़ा हो रहा था,मालूम पड़ता था,शायद जोर की आंधी आने वाली है................?वे सब वही बैठे रहे मै आंधी के डर से अपने घर के तरफ चल दिया................?
{अफशोस मुझे लिखना आता नहीं पर लिखने की चाहत ने ब्लॉगर बना दिया ...........}
पर खोवाब और हकीकत में जमीं आसंमान का फर्क होता है पर इस दिल को कौन समझाए,पहले अपने आप को समझाने की कोशिस भी करता था पर समझा नहीं पता|सोचा की मासूम दिल कही नाराज न हो जाये,ये दिल भी क्या चीज है,जो समझाना चाहो वो समझता नहीं और जो न समझाना चाहो वो ही समझता है|कभी-कभी तो कमब्खत से इतना परेशां हो जाता हु की जी करता है सिने निकल के ही फेक दूँ|
पर ये क्या ये तो अपने आप ही बैगर कुछ बताये ही सब कुछ समझाने लगा ,पता नहीं क्या हुआ इसे किसने इसका भुत उतारा ,अरे अब तो पहले की तरह मुझे न परेशान करता है और न सलमान-सचिन बनाने की जिद |क्या सचमुच समझदार हो गया है ये, या खोवाब और हकीकत की दूरियों का पता चल गया|कुछ भी हो बेटा अब पहले की तरह बात-बात पर जिद नहीं करता है\चलो अच्छा ही हुआ जिस काम को करने के लिए मै न जाने क्या-क्या किया,वो काम कुछ दिनों में अपने आप ही हो गया|
पर पता नहीं क्यों मै कुछ समय से अपने-आप से ही डरता हूँ|सोचता हूँ ये दिल सच-मच समझदार हो गया है,या कोई साजिश रच रहा है|पिछले कुछ समय से देख रहा हूँ इसकी हरकते ठीक नहीं है|दो दिन पहले आधी रत को नाहर वाली पोखर की तरफ दो लडको के साथ जाते देखा था|पता नहीं क्यों पढाई के दिनों से ज्यदा आज-कल किताबो में खोया रहता है|हर बात हर चीज में इस के अन्दर एक नयापन नजर आ रहा है,अपने उम्र से दो गुने लोगो से आज कल इस की ज्यदा पटती है|
पता नहीं क्यों दिल में अजीब-अजीब ख्याल क्यों आ रहे है,समय के साथ दिल-दिमाग की सोच भी बड़ी होती जा रही थी|
अरे ये क्या इस ने तो कल हाई-स्कूल के मास्टर जी की मोटर साईकिल घेड़ ली,बातो-बातो में इस ने धमकी भी दे डाली नहीं होने दूंगा ऐसा?मास्टर जी इंग्लिश पढ़ते है और महीने में सिर्फ एक दिन आते है महिना उठाने |ये ठीक है की मास्टर जी सिर्फ महिना उठाने आते है,पर इस से इसका क्या लेना-देना है|अब इस से तो मुझे बहुत डर लगता है पता नहीं कब कहा किस से किस बात पर लड़ बैठे............?पुरे गांव में ये हवा फ़ैल गई की इस ने मास्टर जी की मोटर साईकिल घेड़ ली थी|ये हवां अभी सांत भी नहीं हुआ था की गांव के मुखिया से लड़ बैठा,,सड़क के किनारे बन रही नाली को लेकर...........................................?
समझ में नहीं आता की पुरे जमाने का ठेका क्यों अपने सर पर उठाना चाहता है .................................अब इस के इरादे मुझे ठीक नहीं लग रहे है......................पर ये कुछ गलत तो कर नहीं रहा,तो मै इस से इतना डर क्यों रहा हूँ,यार.......................फिर भी पता नहीं क्यों दिल कुछ ज्यदा ही परेशां नजर आ रहा है ...............?शाम को हाई स्कूल के मैदान में बैठे-बैठे न जाने दो चार लडको के साथ क्या खुसुर-फुसुर कर रहा था|शाम ढल चुकी थी आसमान में बदलो का जमावड़ा हो रहा था,मालूम पड़ता था,शायद जोर की आंधी आने वाली है................?वे सब वही बैठे रहे मै आंधी के डर से अपने घर के तरफ चल दिया................?
{अफशोस मुझे लिखना आता नहीं पर लिखने की चाहत ने ब्लॉगर बना दिया ...........}